रहते थे कभी जिनके दिल में ...
हम जान से भी प्यारों की तरह...
बैठें हैं उन्ही के कूचों में ...
हम आज गुनाहगारों की तरह ...
.......
दावा था जिसे हमदर्दी का ...
खुद आके ना पूछा हाल कभी ...
महफ़िल में बुलाया है हमको ...
हसने को सितमगारों की तरह ...
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बरसों से सुलगते तन मन पर...
अश्कों के तो छींटे दे ना सके...
तपते हुए दिल जख्मों पर बरसे भी तो अंगारों की तरह ...
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सौ रूप धरे जीने के लिए....
बैठे हैं हजारों बहरूपिये ...
ठोकर ना लगाना हम खुद हैं ....
गिरते हुए दीवारों की तरह ....
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रहते थे कभी जिनके दिल में ...
हम जान से भी प्यारों की तरह...
बैठें हैं उन्ही के कूचों में ...
हम आज गुनाहगारों की तरह ...
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