Thursday 28 June 2012

दिल की गिरह खोल दो



दिल की गिरह खोल दो
चुप ना बैठो कोई गीत गाओ
महफ़िल में अब कौन है अजनबी
तुम मेरे पास आओ

मिलने दो अब दिल से दिल को
मिटने दो मजबूरियों को
शीशे में अपने डुबो दो
सब फासलों दूरियों को
आँखों में मैं मुस्कुराऊँ तुम्हारे
जो तुम मुस्कुराओ
महफ़िल में अब कौन है अजनबी
तुम मेरे पास आओ

हम तुम ना हम तुम रहें अब
कुछ और ही हो गए अब
सपनो की झिलमिल नगर में
जाने कहाँ खो गए अब
हम राह पूछे किसी से
ना तुम अपनी मंजिल बताओ
महफ़िल में अब कौन है अजनबी
तुम मेरे पास आओ

कल हमसे पूछे जो कोई
क्या हो गया था तुम्हे कल
मुड़कर नहीं देखते हम
दिल ने कहा है चला चल
जो दूर पीछे कहीं रह गए
अब उन्हें मत बुलाओ
महफ़िल में अब कौन है अजनबी
तुम मेरे पास आओ

दिल की गिरह खोल दो
चुप ना बैठो कोई गीत गाओ
महफ़िल में अब कौन है अजनबी
तुम मेरे पास आओ

No comments:

Post a Comment