आपके हसीन रुख पे आज नया नूर है
मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या क़ुसूर है
आपकी निगाह ने कहा तो कुछ ज़रूर है
मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या क़ुसूर है
मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या क़ुसूर है
आपकी निगाह ने कहा तो कुछ ज़रूर है
मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या क़ुसूर है
खुली लटों की छांव में खिला खिला ये रूप
है
घटा से जैसे छन रही सुबह सुबह की धुप है
जिधर नज़र मुडी उधर शुरुर ही शुरुर है
मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या क़ुसूर है
झुकी झुकी निगाह में है बला की शोखियाँ
दबी दबी हंसी में भी तड़प रहीं हैं
बिजलियाँ
शबाब आपका नशे में खुद ही चूर चुर है
मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या क़ुसूर है
जहाँ जहाँ पड़े कदम वहाँ फिजां बदल गयी
के जैसे सर-ब-सर बहार आप ही में ढल गयी
किसी में ये कशीश कहाँ जो आप में हुजुर है
मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या क़ुसूर है ...
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