हरी हरी वसुंधरा पे नीला
नीला ये गगन
कि जिसके बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाएं देखो रंग भरी चमक रही उमंग भरी
ये किसने फूल फूल पे किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार है
.........
तपस्वियों सी है अटल ये पर्वतों की चोटियाँ
ये सर्प की घुमेरदार घेरदार घाटियाँ
ध्वजा से ये खड़े हुए हैं वृक्ष देवदार के
गलीचे ये गुलाब के बगीचे ये बहार के ...
ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है ....
ये कौन चित्रकार है ....
.......
कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो
इसके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमका लो आज लालिमा अपने ललाट की
कण कण से झांकती तुम्हे छवि विराट की
अपनी तो आँख एक है उसकी हज़ार है ...
ये कौन चित्रकार है ....
कि जिसके बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाएं देखो रंग भरी चमक रही उमंग भरी
ये किसने फूल फूल पे किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार है
.........
तपस्वियों सी है अटल ये पर्वतों की चोटियाँ
ये सर्प की घुमेरदार घेरदार घाटियाँ
ध्वजा से ये खड़े हुए हैं वृक्ष देवदार के
गलीचे ये गुलाब के बगीचे ये बहार के ...
ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है ....
ये कौन चित्रकार है ....
.......
कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो
इसके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमका लो आज लालिमा अपने ललाट की
कण कण से झांकती तुम्हे छवि विराट की
अपनी तो आँख एक है उसकी हज़ार है ...
ये कौन चित्रकार है ....
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