Wednesday 27 June 2012

न किसी की आंख का नूर हूँ



न किसी की आंख का नूर हूँ
न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके
मैं वो एक मुश्त--गुब्बार हूँ
न किसी की आंख का नूर हूँ
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न तो मैं किसी का हबीब हूँ
न तो मैं किसी का रक़ीब हूँ
जो बिगड गया वोह नसीब हूँ
जो उजड गया वोह दयार हूँ
न किसी की आंख का नूर हूँ
.................
मेरा रंग रूप बिगड गया
मेरा यार मुझ से बीछड गया
जो चमन खिज़ाँ से उजड गया
मैं उस ही की फ़सल--बहार हूँ
न किसी की आंख का नूर हूँ
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अये फ़ातेहा कोइ आये क्युँ
कोइ चार फूल चढाये क्युँ
कोइ आ के शम्मा जलाये क्युँ
मैं वोह बे-कसी का मज़ार हूँ
न किसी की आंख का नूर हूँ

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