शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब ...
उसमें फिर मिलायी जाये थोड़ी सी शराब ...
होगा यूँ नशा जो तैयार ...
वो प्यार है ....
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हँसता हुआ बचपन वो बहका हुआ मौसम है ...
छेड़ो तो इक शोला है छू लो तो बस शबनम है ...
गांव में मेले में राहों में अकेले में ...
आता जो याद बार बार वो प्यार है ...
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रंग में पिघले सोना अंग से यूँ रस छलके
जैसे बजे धुन कोई रात में हलके हलके
धुप में छाओं में झूमती हवाओं में
हरदम करे जो इंतज़ार वो प्यार है .....
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याद अगर वो आये कैसे कटी तनहायी
सुने शहर में जैसे बजने लगे शहनाई
आना हो जाना हो कैसा भी जमाना हो
उतरे कभी ना जो खुमार वो प्यार है ...
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शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब ...
उसमें फिर मिलायी जाये थोड़ी सी शराब ...
होगा यूँ नशा जो तैयार ...
वो प्यार है ....
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