कभी ए हकीकत -ए-मुन्तज़र , नज़र आ लिबास -ए -मजाज़ में
के हज़ारों सजदे तड़प रहे हैं मेरी जबीं -ए -नियाज़ में
ना बचा -बचा के तू रख इसे , तेरा आईना है वो आईना
के शिकस्ता हो तो अजीजतर है निगाह -ए -अईनासाज़ में
के हज़ारों सजदे तड़प रहे हैं मेरी जबीं -ए -नियाज़ में
ना बचा -बचा के तू रख इसे , तेरा आईना है वो आईना
के शिकस्ता हो तो अजीजतर है निगाह -ए -अईनासाज़ में
ना वो इश्क़ में रहीं गर्मियां न वो हुस्न में रहीं शोखियाँ
ना वो गज़नवी में तड़प रही
ना वो ख़म है ज़ुल्फ़ -ए -आयाज़ में
मैं जो सर -बा -सजदा कभी हुआ , तो ज़मीन से आने लगी सदा
तेरा दिल तो है सनम आशना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
कभी ए हकीकत -ए-मुन्तज़र , नज़र आ लिबास -ए -मजाज़ में
के हज़ारों सजदे तड़प रहे हैं मेरी जबीं -ए -नियाज़ में
ना वो गज़नवी में तड़प रही
ना वो ख़म है ज़ुल्फ़ -ए -आयाज़ में
मैं जो सर -बा -सजदा कभी हुआ , तो ज़मीन से आने लगी सदा
तेरा दिल तो है सनम आशना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
कभी ए हकीकत -ए-मुन्तज़र , नज़र आ लिबास -ए -मजाज़ में
के हज़ारों सजदे तड़प रहे हैं मेरी जबीं -ए -नियाज़ में
No comments:
Post a Comment