Wednesday 27 June 2012

कभी ए हकीकत -ए-मुन्तज़र




कभी ए हकीकत -ए-मुन्तज़र , नज़र  आ   लिबास -ए -मजाज़  में 
के  हज़ारों सजदे तड़प  रहे  हैं  मेरी  जबीं -ए -नियाज़  में 

ना  बचा -बचा के  तू  रख  इसे , तेरा  आईना  है  वो  आईना 
के  शिकस्ता  हो  तो  अजीजतर  है  निगाह -ए -अईनासाज़  में 
ना  वो  इश्क़  में  रहीं  गर्मियां  न  वो  हुस्न  में  रहीं  शोखियाँ 
ना  वो  गज़नवी  में  तड़प  रही 
ना  वो  ख़म  है  ज़ुल्फ़ -ए -आयाज़  में 

मैं  जो  सर -बा -सजदा  कभी  हुआ , तो  ज़मीन  से  आने  लगी  सदा 
तेरा  दिल  तो है  सनम  आशना तुझे  क्या  मिलेगा  नमाज़  में 

कभी ए हकीकत -ए-मुन्तज़र , नज़र  आ   लिबास -ए -मजाज़  में 
के  हज़ारों सजदे तड़प  रहे  हैं  मेरी  जबीं -ए -नियाज़  में 

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